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naat sharif in punjabi

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Mawlid shares the two the activities, start along with the Demise of Prophet Muhammad, peace and blessings be upon him.

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Website visitors arriving in Saudi Arabia are required to provide a destructive PCR COVID-19 exam taken no more than 72 hours prior to departure and an accepted paper vaccination certification, issued by the Formal health and fitness authorities inside the issuing region.

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Mashallah aap jese naat kha mene nhi suna ta .aapki voice me mere Nabi SAWW ki naat ho ya hamad ho ya manqabat ho sab mujhe ek alag hi sukun pahuchati hai ..Allah apne Habib k sadke Zulfiqar Ali husaaini shab ko jannatul firdaus me aala se aala maqam ata kre.

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All people arriving inside the country with a sound visa have to offer proof of an entire training course of 1 the 4 vaccines (vaccine certificates for COVID 19).

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नबी का प्यारा, हसीं दुलारा, कमाल आया ! कमाल आया !

दिल ये 'उमर का बोल उठा, ला-इलाहा-इल्लल्लाह

ऐ ज़हरा के बाबा ! सुनें इल्तिजा मदीना बुला लीजिए कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा मदीना बुला लीजिए सताती है मुझ को, रुलाती है मुझ को ये दुनिया बहुत आज़माती है मुझ को हूँ दुनिया की बातों से टूटा हुआ मदीना बुला लीजिए बड़ी बेकसी है, बड़ी बे-क़रारी न कट जाए, आक़ा ! यूँही 'उम्र सारी कहाँ ज़िंदगानी का कुछ है पता मदीना बुला लीजिए ये एहसास है मुझ को, मैं हूँ कमीना हुज़ूर ! आप चाहें तो आऊँ मदीना गुनाहों के दलदल में मैं हूँ फँसा मदीना बुला लीजिए मैं देखूँ वो रौज़ा, मैं देखूँ वो जाली बुला लीजे मुझ को भी, सरकार-ए-'आली !

लक़ब जो सिद्दीक़ तेरा ठहरा, निराला सब से है तेरा पहरा

कर्ब-ओ-बला में जब के था, तेरे नवासे का सज्दा

मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से डालो नज़र-ए-करम, सरकार ! अपने मँगतों पर इक बार हम ने आस है लगाई बड़ी देर से मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरे रब ने मालिक किया तेरे जद को तेरे घर से दुनिया पली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरा रुत्बा आ'ला न क्यूँ हो, कि मौला !

मैं निशार तेरे कलाम पर मिले यू तो किसको जुबां नहीं

●यक़ीनन वो जन्नत का हक़दार होगा, नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई

मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से डालो नज़र-ए-करम, सरकार ! अपने मँगतों पर इक बार हम ने आस है लगाई बड़ी देर से मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरे रब ने मालिक किया तेरे जद को तेरे घर से दुनिया पली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरा रुत्बा आ'ला न क्यूँ हो, कि मौला !

गुलशन कलमा पढ़ते हैं, चिड़िया कलमा पढ़ती है

तू है इब्न-ए-मौला-'अली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से क़दम गर्दन-ए-औलिया पर है तेरा तू है रब का ऐसा वली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तुम जो बनाओ, बात बनेगी दोनों जहाँ में लाज रहेगी लजपाल ! करम अब कर दो मँगतों की झोली भर दो भर दो कासा सब का पंज-तनी ख़ैर से मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से कहा हम ने '

हाफ़िज़ कामरान क़ादरी अलीशा कियानी ham ne aankho.n se dekha nahin hai magar un ki tasweer seene me.n maujood hai jis ne laa kar kalaam-e-ilaahi diya wo muhammad madine me.n maujood hai ham ne aankho.n se dekha nahin hai magar un ka jalwa to seene me.n maujood hai jis ne laa kar kalaam-e-ilaahi diya wo muhammad m

फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो रुख़ से पर्दा अब अपने हटा दो अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं एक मुजरिम सियाह-कार हूँ मैं हर ख़ता का सज़ा-वार हूँ मैं मेरे चारों तरफ़ है अँधेरा रौशनी का तलबग़ार हूँ मैं इक दिया ही समझ कर जला दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं वज्द में आएगा सारा 'आलम हम पुकारेंगे, या ग़ौस-ए-आ'ज़म वो निकल आएँगे जालियों से और क़दमों में गिर जाएँगे हम फिर कहेंगे कि बिगड़ी बना दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा !

जिस को शजर जानते हैं, कहना हजार मानते हैं।

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